“जब हरियाली ग़ुलाम बनी और अफ़सरों ने तस्करों के दरबार में सर झुका दिया?—सूरजपुर के जंगलों में ‘सब्ज़ बग़ावत’ का ऐलान या तबाही का मंसूबा?”नया अध्याय!
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सूरजपुर | आज सूरजपुर के जंगलों में सिर्फ पेड़ों की टहनियाँ नहीं कट रहीं, बल्कि क़ानून का गला घोंटा जा रहा है! हरियाली की चादर ओढ़े इस ज़िले के जंगल अब तस्करों की जागीर बन चुके हैं? हालात इतने बदतर हो गए हैं कि वन विभाग और राजस्व अमला लकड़ी तस्करों के आगे सजदा कर चुका है। न कोई रोक, न कोई टोक—बस खुलेआम लूट?
सूत्रों की मानें, तो यह कोई साधारण तस्करी नहीं, बल्कि एक सुनियोजित ‘पर्यावरणीय नरसंहार’ है, जिसमें सिर्फ जंगल ही नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र की साख भी तार-तार हो रही है। यूकेलिप्टस की आड़ में हजारों बेशकीमती पेड़ काटे जा रहे हैं, और तस्करी का यह कारोबार इतना संगठित और शातिराना है कि पूछो मत!
“प्रशासन बना ‘मूकदर्शक’, तस्कर बने ‘अभिनय सम्राट
क्या प्रशासन सच में अंधा और बहरा हो गया है, या फिर यह खामोशी एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा है? दरअसल, इस खामोशी के पीछे तस्करों की वो ताकत है जो काग़ज़ी कानूनों से कहीं ज़्यादा प्रभावशाली है—राजनीतिक संरक्षण!
अगर कोई ईमानदार अफ़सर इनके रास्ते में आता है, तो फोन की एक घंटी बजती है और दूसरी तरफ से कोई बड़ा नेता हुक्म जारी कर देता है—”हमारे आदमी को परेशान मत करो!” बस फिर क्या था, अफ़सर जी भी खीसें निपोरकर वापस अपनी कुर्सी पर बैठ जाते हैं और तस्कर अपने कारोबार में मशगूल हो जाते हैं।
सूरजपुर के जंगल या ‘दारुल-गुनाह’? जहां तस्करों की तालीम में अफ़सर मुरीद, और हरियाली बेपनाह कैद!”
तस्करों की कार्यशैली: पहले जंगल में पेड़ों को चिह्नित किया जाता है, फिर ट्रैक्टरों में लादकर इन्हें गुप्त डिपो तक पहुँचाया जाता है। इसके बाद रात के अंधेरे में या फिर भोर के तड़के भारी ट्रकों में भरकर यह लकड़ी बाहरी राज्यों में भेज दी जाती है।
अवैध डिपो का साम्राज्य: सूरजपुर, परी, कर पसला और पीढ़ा जैसे इलाकों में इन तस्करों ने किराए की जमीन लेकर अवैध डिपो बना रखे हैं। यहाँ बिना किसी सरकारी दस्तावेज़ के टनों की संख्या में लकड़ी का भंडारण किया जाता है।
नकली दस्तावेजों का गोरखधंधा: अगर कोई अफसर जांच के लिए पहुँच भी जाता है, तो कुछ सेकंड के भीतर ‘कागजात’ तैयार हो जाते हैं! यह कागजात असली दिखते हैं, लेकिन वास्तव में यह एक फर्जीवाड़ा होता है, जिसमें विभागीय अफ़सरों की भी मिलीभगत रहती है।
24×7 ट्रकों की आवाजाही: इन रास्तों पर 24 घंटे ट्रक और ट्रैक्टर दौड़ते रहते हैं, जिससे सड़क हादसों का ख़तरा भी बढ़ गया है। लेकिन प्रशासन की आँखें तो जैसे नींद में धँसी हुई हैं!
“डरो मत, करो कटाई! परमिशन दिलाना हमारा काम है”
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जिले के कुछ राजस्व अधिकारी खुद तस्करों को यह समझा रहे हैं कि बेधड़क कटाई करो, कोई रोकने वाला नहीं है। परमिशन की चिंता मत करो, वह हम दिला देंगे। यह वही प्रशासन है जो आम नागरिकों से एक अदद सरकारी काम के लिए महीनों चक्कर कटवाता है, लेकिन माफियाओं के लिए हर सुविधा चुटकियों में उपलब्ध करा दी जाती है।बड़ा सवाल यह है कि यह खेल नीचे से चल रहा है, या फिर बड़े अधिकारी भी इसमें हिस्सेदार हैं? अगर अधिकारी ईमानदार हैं, तो फिर क्यों सूरजपुर का पूरा प्रशासन इस खुली लूट पर आंख मूंदे बैठा है? क्या यह साजिश सिर्फ जिले तक सीमित है, या फिर राजधानी तक इसकी जड़ें फैली हुई हैं?
वन विभाग की ‘कठपुतली मीटिंग’—क्या दिखावटी नाटक था?
हाल ही में एक ‘प्रायोजित बैठक’ हुई, जिसमें तय किया गया कि अब किसी भी पेड़ की कटाई से पहले एसडीएम कार्यालय से अनुमति लेनी होगी। लेकिन इसके कुछ घंटे बाद ही एक गुप्त बैठक हुई, जिसमें तस्करों को यह भरोसा दिलाया गया कि उनका ‘कारोबार’ अब भी जारी रहेगा!
यानी जो सरकार खुद कानून बना रही है, वही उसकी धज्जियाँ उड़ाने वालों को बचाने में जुटी है!
नेताओं, अफ़सरों और तस्करों का ‘त्रिदेव गठबंधन’
अब सवाल यह है कि तस्करों को इतनी हिम्मत कौन दे रहा है? जवाब बेहद चौंकाने वाला है—सियासी वरदहस्त!
अगर कोई जाबांज़ अफ़सर इन तस्करों के खिलाफ़ कार्रवाई करना भी चाहे, तो नेता उसकी गर्दन दबा देते हैं। पुलिस भी जानती है कि इन तस्करों को छेड़ने का मतलब है—राजनीतिक कोप का भाजन बनना!
अब क्या होगा?
यह सवाल सूरजपुर के हर नागरिक की ज़ुबान पर है। आम जनता का धैर्य टूट रहा है। नागरिक अब मांग कर रहे हैं कि:
✅ सभी अवैध डिपो को तुरंत सील किया जाए। ✅ बिना अनुमति काटे गए सभी पेड़ों को ज़ब्त किया जाए।✅ बाहरी राज्यों से आए संदिग्ध तस्करों की पहचान कर कार्रवाई की जाए। ✅ तस्करी में शामिल अफ़सरों और नेताओं को बेनकाब किया जाए।
अगर इन मांगों पर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो यह साफ़ हो जाएगा कि प्रशासन ने ‘पर्यावरण हत्या’ का सौदा कर लिया है।अब देखना यह है कि यह खबर सिर्फ़ चाय की प्याली में तूफ़ान बनकर रह जाएगी, या फिर प्रशासन को वाकई हिला कर रख देगी!
“तस्करों की हिम्मत और सरकार की खामोशी पर एक ही बात कही जा सकती है—”_”जब रखवाले ही लूटेरों