सूरजपुर की सियासत में उथल-पुथल: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी पर किसका इख़्तियार?
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सूरजपुर । छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में सियासी हलचल अपने चरम पर है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के नतीजों के बाद अब जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी के लिए रस्साकशी तेज़ हो गई है। इस बार सत्ता का समीकरण कुछ इस तरह बदला है कि निर्दलीयों की ‘सियासी क़िस्मत’ चमकने के पूरे आसार नज़र आ रहे हैं। जोड़-घटाव का खेल शुरू हो चुका है, रणनीतियां बनाई जा रही हैं और राजनीतिक गलियारों में बेचैनी बढ़ रही है।
सूरजपुर में किसके सिर बंधेगा जीत का ताज?
15 सीटों वाली सूरजपुर जिला पंचायत में इस बार सियासी गणित ने नया रुख़ अख्तियार कर लिया है। पहले चरण में कांग्रेस ने बढ़त बनाई थी, लेकिन भाजपा के लिए यह शुरुआती झटका साबित हुआ। जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ा, भाजपा ने वापसी की और तीसरे चरण तक कुल 6 सीटें अपने नाम कर लीं। उधर, कांग्रेस को मात्र 4 सीटों पर संतोष करना पड़ा। लेकिन सबसे दिलचस्प मोड़ निर्दलीय प्रत्याशियों ने ला दिया, जिन्होंने 5 सीटों पर जीत दर्ज कर सत्ता के समीकरणों को उलझा दिया है। अब सूरजपुर की सियासी तख़्त का भविष्य इन्हीं निर्दलीयों के हाथों में है, जो सत्ता का पासा पलटने की ताक़त रखते हैं।
निर्दलीयों का बढ़ता सियासी कद: सत्ता की चाबी किसके हाथ?
इस बार सूरजपुर की सियासत में निर्दलीयों की अहमियत सबसे ज़्यादा बढ़ गई है। इनमें सबसे मज़बूत नाम उभरकर आ रहा है पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह की बेटी मोनिका सिंह का।
वे न सिर्फ आदिवासी समुदाय से आती हैं, बल्कि निर्दलीय जीतने वाली अकेली महिला प्रत्याशी भी हैं।
अगर समीकरण उनके पक्ष में बैठा, तो जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर उनका दावा सबसे मज़बूत रहेगा।
दूसरी ओर, भाजपा ने भी सत्ता हासिल करने के लिए पूरी ताक़त झोंक दी है। पार्टी के लिए सबसे मज़बूत दावेदार पूर्व गृह मंत्री रामसेवक पैकरा की पत्नी शशिकला पैकरा मानी जा रही थीं, लेकिन उनकी हार के बाद समीकरण पूरी तरह बदल गया। अब भाजपा खेमा प्रतापपुर से विजयी चंद्रमणि पैकरा और बिहारपुर से विजय कुसुम सिंह को आगे करने की रणनीति बना रहा है।
कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ीं, उपाध्यक्ष पद तक सीमित होती राजनीति
कांग्रेस इस चुनाव में सबसे बड़ी सियासी मार झेलती नज़र आ रही है। जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट आदिवासी महिला के लिए आरक्षित होने के कारण कांग्रेस के पास कोई प्रभावी उम्मीदवार नहीं बचा। पहले चरण की बढ़त के बावजूद कांग्रेस को दूसरे और तीसरे चरण में करारा झटका लगा। अब पार्टी सिर्फ उपाध्यक्ष पद के लिए किसी राजनीतिक समीकरण के इंतज़ार में है।
भाजपा बनाम निर्दलीय: कौन मारेगा बाज़ी?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि भाजपा अपनी 6 सीटों के बूते सत्ता हासिल कर पाएगी या निर्दलीय कोई नया सियासी खेल खेलेंगे? मोनिका सिंह के समर्थन में उनकी मां रेणुका सिंह पूरी ताक़त लगा रही हैं, जबकि चंद्रमणि पैकरा के लिए रामसेवक पैकरा लॉबिंग कर रहे हैं। इस सियासी जंग में पूर्व राज्यसभा सांसद स्व. शिवप्रताप की बहू कुसुम सिंह भी अपनी स्थिति मज़बूत करने में लगी हैं।
निर्दलीयों का रुख़: किस ओर झुकेगी सत्ता की चाबी?
अब पूरा दारोमदार निर्दलीयों पर है। अगर वे भाजपा के साथ जाते हैं, तो भाजपा के लिए राह आसान हो जाएगी। लेकिन अगर निर्दलीयों ने कोई नया समीकरण गढ़ा, तो सूरजपुर की राजनीति में बड़ा उलटफेर मुमकिन है।
बहरहाल, अब सूरजपुर की राजनीति में बैठकों का दौर तेज़ होगा, सियासी गुफ़्तगू बढ़ेगी और सत्ता की कुर्सी के लिए नए समीकरण बनाए जाएंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि निर्दलीयों की ‘सियासी क़िस्मत’ किसके हक़ में खुलती है और आख़िरकार सूरजपुर की सत्ता पर कौन क़ाबिज़ होता है।