“बारात चढ़ी, घुड़चढ़ी हुई, लेकिन ‘निकाह-ए-नाबालिग’ पर प्रशासन का ‘फरमान-ए-मनाही’ – और मंडप में लग गई ताला-बंदी!”
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सूरजपुर | छत्तीसगढ़ का सूरजपुर जिला एक बार फिर चर्चा में है। इस बार वजह कोई आम प्रशासनिक कार्रवाई नहीं, बल्कि एक ऐसा अभियान है, जिसने आधी रात तक पूरे इलाके में सनसनी फैला दी। प्रशासन ने न केवल बाल विवाह को रोका, बल्कि यह भी साबित किया कि कानून के खिलाफ जाने वालों के लिए अब कोई जगह नहीं है।
इस पूरे घटनाक्रम में नया मोड़ तब आया, जब प्रशासनिक अधिकारियों की टीम ने घने अंधेरे और विरोध के बावजूद एक ही मंडप में दो नाबालिग बहनों की शादी को रुकवा दिया। पुलिस बल की सीमित उपलब्धता के बावजूद प्रशासन ने सूझबूझ और कड़ाई से हालात को संभाला। यह घटना सिर्फ एक बाल विवाह को रोकने की नहीं, बल्कि समाज की उस मानसिकता से लड़ने की भी थी, जो आज भी कुरीतियों को पोषित कर रही है।

गुप्त सूचना से लेकर प्रशासन की रणनीति तक
यह मामला सूरजपुर के भटगांव थाना क्षेत्र का है, जहां रात करीब 9 बजे जिला प्रशासन को गुप्त सूचना मिली कि एक गांव में दो नाबालिग बहनों की शादी कराई जा रही है। सूचना मिलते ही कलेक्टर एस. जयवर्धन के निर्देश पर जिला कार्यक्रम अधिकारी रमेश साहू ने तत्काल एक टीम गठित की और मौके पर भेजने का आदेश दिया जहां जिला बाल संरक्षण अधिकारी मनोज जायसवाल और उनकी टीम मौके पर पहुंची।
जब प्रशासन की टीम रात 11 बजे गांव पहुंची, तो वहां का नजारा चौंकाने वाला था। घर के बाहर बारात नाच रही थी, लोग नशे में झूम रहे थे और अंदर मंडप सजा था। शादी की रस्में शुरू हो चुकी थीं। लेकिन जैसे ही प्रशासन की टीम पहुंची, माहौल गर्मा गया।
शैक्षणिक दस्तावेजों से खुली पोल, मेहंदी ने कर दिया पर्दाफाश
प्रशासन ने जब लड़कियों की उम्र का प्रमाण मांगा, तो परिवार वालों ने पहले कहा कि वे स्कूल नहीं गईं। फिर बहाना बनाया कि “दस्तावेज दीमक खा गए हैं”। लेकिन प्रशासन ने तत्काल शिक्षा विभाग को सक्रिय किया और रात में ही स्थानीय स्कूल खुलवाकर रिकॉर्ड खंगाला गया।
रजिस्टर में दर्ज जन्मतिथि ने पूरा सच सामने ला दिया—बड़ी लड़की की उम्र सिर्फ 16 साल थी और छोटी की 15 साल से भी कम।
जब भीड़ ने विरोध किया और परिवार वालों ने शादी से इंकार किया, तो प्रशासन ने लड़कियों से खुद पूछताछ की। उनके हाथों की मेहंदी में दूल्हों के नाम मिले, जिसने सारी कहानी बयान कर दी।
यह देखते ही बाराती, दूल्हा, डीजे वाले और वाहन चालक अंधेरे का फायदा उठाकर भाग खड़े हुए।
परिवार का अड़ियल रुख और प्रशासन की सख्ती
परिवार वाले किसी भी हालत में शादी करवाने पर अड़े थे। बार-बार कानूनी कार्रवाई की चेतावनी देने के बावजूद वे झुकने को तैयार नहीं थे। हालात बिगड़ते देख प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया और बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी।
आखिरकार, भारी दबाव के बाद रात 2 बजे परिवार वालों को झुकना पड़ा और लड़कियों को प्रशासन को सौंप दिया गया। महिला कर्मचारियों की निगरानी में दोनों बहनों को ‘सखी वन स्टॉप सेंटर’ में सुरक्षित भेजा गया।

अगली ही रात दो और बाल विवाह रोके गए
अगले ही दिन रामानुजनगर और ओडगी विकासखंड में भी प्रशासन को दो और बाल विवाह की सूचनाएं मिलीं। जिला कार्यक्रम अधिकारी रमेश साहू के निर्देश पर टीम तुरंत रवाना हुई।
रामानुजनगर में ग्रामीणों को समझाकर शादी रुकवाई गई।
ओडगी में 17 वर्षीय लड़की का विवाह रुकवाने के लिए प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ी।
इन मामलों ने यह साबित कर दिया कि बाल विवाह की समस्या आज भी समाज में गहरी पैठ रखती है, जिसे केवल प्रशासनिक कार्रवाई से नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव से मिटाया जा सकता है।
बाल विवाह पर प्रशासन की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति
कलेक्टर एस. जयवर्धन ने स्पष्ट शब्दों में कहा,”बाल विवाह अपराध है और इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। प्रशासन पूरी ताकत से ऐसे मामलों को रोकने के लिए तत्पर रहेगा। जो लोग कानून तोड़ेंगे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।”बाल विवाह रोकने में सहयोग करने वालों को प्रोत्साहित किया जाएगा, जबकि शादी कराने वालों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।