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1st June 2025

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सरगुजा की रूह पर जंगलख़ोरों का वार! हसीन वादियों में साज़िशों की आँधियाँ, अब बरसेगी हुकूमत की बिजली या रहेगा इंसाफ़ बेबस?

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सूरजपुर | सरगुजा! वह ज़मीन, जिसे आदिवासियों की पहचान, जंगलों की सरज़मीं और हरियाली का गहना कहा जाता है। यही सरगुजा, जहां सदियों से जंगलों की हिफ़ाज़त को मज़हब की तरह माना गया, आज लकड़ी माफियाओं के पंजों में तड़प रहा है।

जहां कभी सरकार ने पर्यावरण बचाने की कसम खाई थी, वहां आज यूकेलिप्टस, सेमर और इमारती लकड़ियों की तस्करी खुलेआम हो रही है। यह कोई मामूली गुनाह नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साज़िश है— एक ऐसी साज़िश, जो सिर्फ जंगलों को नहीं, बल्कि इस ज़िले की आत्मा को निगलने पर आमादा है।

माफिया, दलाल और अफ़सर! किसके इशारे पर हो रहा यह सब?

सूत्रों की मानें तो इस संगठित गिरोह के पीछे सिर्फ़ सड़क छाप लकड़ी तस्कर नहीं, बल्कि बड़े सफ़ेदपोश भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश से आए माफियाओं का गिरोह स्थानीय रसूखदारों के साथ मिलकर इस काले धंधे को चला रहा था। यह गुनाह कोई चोरी-छिपे नहीं हुआ— यह खुलेआम, प्रशासन की आंखों के सामने, हर दिन होता रहा। लेकिन न कोई जांच बैठी, न कोई एक्शन हुआ, और न ही सरकार की वो हरियाली बचाने वाली मुहिम कहीं नज़र आई!

आठ महीने से जारी जंगलों की कटाई, हुकूमत गहरी नींद में!

अगर कोई यह सोच रहा है कि यह खेल सिर्फ़ कुछ दिनों से चल रहा है, तो वह सरासर ग़लतफ़हमी में है। पूरे आठ महीने से इस ज़िले के जंगलों में पेड़ों का क़त्ले-आम जारी था।

रामानुजनगर, सूरजपुर, भैयाथान, ओडगी, भटगांव, प्रतापपुर— हर तरफ़ जंगलों की जड़ें काटी जा रही थीं।यूकेलिप्टस के नाम पर हज़ारों पेड़ धराशायी किए जा चुके हैं।हर रात दर्जनों ट्रकों में लकड़ी लोड होती और दूसरे राज्यों में भेज दी जाती।

कहां था प्रशासन? कहां था वन विभाग? कहां था क़ानून?

क्या सरकारी अफ़सरों ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं या फिर नोटों की चकाचौंध में अंधे हो चुके थे?

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बिना कागज़ों के दौड़ रहे थे ट्रैक्टर, कौन था इनका सरपरस्त?

उत्तर प्रदेश से लाए गए ट्रैक्टर दिन-रात जंगलों की लाशें ढो रहे थे। बिना नंबर, बिना कागज़, बिना रोक-टोक!

अब बड़ा सवाल यह है—

ये ट्रैक्टर किसकी शह पर धड़ल्ले से दौड़ रहे थे?जब पूरे ज़िले में एक साइकिल तक बिना रजिस्ट्रेशन के नहीं चल सकती, तो ये ट्रैक्टर कौन चला रहा था? क्या पुलिस, वन विभाग और राजस्व विभाग की मिलीभगत के बिना यह खेल संभव था? अगर कोई यह सोचता है कि यह सिर्फ़ यूकेलिप्टस की तस्करी थी, तो वह बहुत भोला है। इस लकड़ी के धंधे की आड़ में इमारती लकड़ियों की भी तस्करी की जा रही थी— साल, सागौन और न जाने कितनी क़ीमती लकड़ियाँ, जो अब सरगुजा के जंगलों में कम ही नज़र आती हैं!

खुलेआम घूम रहे थे बाहरी गुंडे, क्या कोई बड़ी साज़िश तो नहीं?

इस तस्करी के पीछे सिर्फ़ लकड़ी माफिया ही नहीं, बल्कि सैकड़ों बाहरी लोग भी इस ज़िले में दाख़िल हो चुके हैं।

न कोई पहचान, न कोई रिकॉर्ड, न कोई पुलिस वेरिफ़िकेशन!

क्या प्रशासन को नहीं पता कि—

कौन हैं ये लोग? कहां से आए? अगर ये किसी बड़ी वारदात को अंजाम देकर भाग जाएं, तो कौन जिम्मेदार होगा?

आज ये जंगल लूट रहे हैं, कल ये आपके घरों में सेंध लगाएंगे और तब सरकार सिर्फ़ प्रेस कॉन्फ्रेंस करती नज़र आएगी!

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एसडीएम का एक्शन, पर क्या यह काफ़ी है?

जब यह मामला तूल पकड़ने लगा, तो सूरजपुर की एसडीएम शिवानी जायसवाल ने राजस्व और वन विभाग के साथ बैठक कर कुछ सख्त क़दम उठाए।

अब से—

1. किसी भी पेड़ की कटाई से पहले एसडीएम की अनुमति अनिवार्य होगी।

2. पटवारी, आरआई और फॉरेस्ट गार्ड पहले सत्यापन करेंगे, फिर ही पेड़ काटे जा सकेंगे।

3. सभी भंडारण स्थलों की जाँच होगी, फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों की पड़ताल होगी।

4. अवैध रूप से लकड़ी ले जा रहे ट्रकों और ट्रैक्टरों को जप्त किया जाएगा।

लेकिन बड़ा सवाल यह है— क्या यह कार्रवाई सिर्फ़ दिखावा है, या सच में जंगलों को बचाने का इरादा है?क्या माफियाओं पर शिकंजा कसा जाएगा, या फिर छोटे-मोटे तस्करों को पकड़कर खानापूर्ति कर ली जाएगी?क्या लकड़ी माफिया के सरगनाओं के नाम उजागर होंगे, या फिर उनकी ऊंची पहुंच उन्हें बचा लेगी?

अगर अब भी सरकार नहीं जागी, तो जंगल बचेगा नहीं— सिर्फ़ अफ़सोस बचेगा!सरगुजा का जंगल सिर्फ़ पेड़ों का झुंड नहीं है। यह यहाँ के आदिवासियों की पहचान है। यह उनकी ज़िंदगी है। यह उनकी पुश्तैनी धरोहर है।लेकिन इस तस्करी ने यह साबित कर दिया कि पर्यावरण बचाने की सरकारी मुहिमें सिर्फ़ अख़बारों की सुर्ख़ियाँ हैं— हकीकत में जंगलों पर चल रही कुल्हाड़ी की आवाज़ कोई नहीं सुन रहा!

अब जनता को फैसला करना होगा!

क्या हम इस जंगल लूट को चुपचाप देखते रहेंगे?क्या हम उन अफ़सरों से जवाब मांगेंगे, जिन्होंने अपनी ड्यूटी नहीं निभाई?क्या हम उन सफ़ेदपोश गुनहगारों को बेनकाब करेंगे, जो पर्दे के पीछे से इस धंधे को चला रहे थे?

अगर नहीं, तो याद रखिए—

यह जंगल सिर्फ़ पेड़ नहीं थे, ये आपकी सांसें थीं।
और अगर आज ये कटे, तो कल आप भी इस ज़हरीली दुनिया में सांस नहीं ले पाएंगे!

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