बाल विवाह के अंधेरे में रोशनी की किरण, जागरूकता की नई अलख,,
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AMIR PATHAN
सूरजपुर – जब किसी समाज में कोई बुराई अपनी जड़ें गहरी जमा लेती है, तो उसे मिटाने के लिए सिर्फ क़ानून ही नहीं, बल्कि एक मज़बूत इरादे की दरकार होती है। सूरजपुर ज़िले में बाल विवाह जैसी कुप्रथा को समूल नष्ट करने के लिए अब शिक्षा के मंदिरों से ही क्रांति की मशाल जल उठी है। कलेक्टर एस. जयवर्धन के निर्देश और जिला कार्यक्रम अधिकारी रमेश साहू के मार्गदर्शन में पूरा प्रशासन इस लड़ाई को एक निर्णायक मोड़ देने के लिए कटिबद्ध है।
शिक्षकों को बनाया गया जागरूकता के वाहक
बाल विवाह के खिलाफ इस महाअभियान में शिक्षकों को केंद्र में रखा गया है, क्योंकि यही वह धरोहर हैं जो एक समाज की सोच को नया आकार दे सकते हैं। जिला शिक्षा अधिकारी श्रीमती भारती वर्मा ने सभी हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल के शिक्षकों को निर्देशित किया कि वे बाल विवाह और बाल अधिकारों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए आयोजित कार्यशालाओं में अनिवार्य रूप से शामिल हों। इसी क्रम में विकासखंड भैयाथान के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भैयाथान में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जहां शिक्षकों को बाल विवाह से होने वाली भयावह त्रासदी से अवगत कराया गया।
सूरजपुर – एक चिंताजनक तस्वीर
कार्यशाला को संबोधित करते हुए जिला बाल संरक्षण अधिकारी मनोज जायसवाल ने एक ऐसी सच्चाई उजागर की जो किसी भी संवेदनशील समाज के लिए आत्ममंथन का कारण बने। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक बाल विवाह सूरजपुर जिले में होते हैं, जहाँ यह आंकड़ा 34% तक पहुँच चुका है। यह आंकड़ा केवल एक संख्या नहीं, बल्कि उन मासूम ज़िंदगियों की दर्दनाक दास्तान है, जो समय से पहले जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा दी जाती हैं। हालांकि, प्रशासन की मुस्तैदी के चलते अब इस पर अंकुश लगने लगा है।
स्कूल की चारदीवारी के भीतर पलते हैं नन्हे सपने
श्री जायसवाल ने स्पष्ट किया कि अधिकतर बाल विवाह 9वीं से 12वीं कक्षा की छात्राओं के साथ होते हैं, या फिर उन बच्चियों के साथ जो किसी कारणवश पढ़ाई से ड्रॉपआउट हो जाती हैं। यदि इस आयु वर्ग की लड़कियों को जागरूक कर दिया जाए, तो 90% बाल विवाह रोके जा सकते हैं। स्कूल केवल शिक्षा का स्थान नहीं, बल्कि समाज सुधार की प्रयोगशाला भी हो सकते हैं। यही वजह है कि इस कार्यशाला का आयोजन किया गया ताकि शिक्षक स्वयं जागरूक हों और अपने छात्रों को भी इस मुद्दे पर सतर्क करें।
बाल विवाह – मासूम ज़िंदगियों का सौदा
बाल विवाह महज़ एक रस्म नहीं, बल्कि एक सामाजिक पाप है, जो न केवल एक बच्ची के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि उसके सपनों को भी समय से पहले चकनाचूर कर देता है। कम उम्र में शादी के बाद लड़कियां गर्भधारण के दौरान जटिलताओं का शिकार होती हैं, जिससे नवजात और माँ दोनों के जीवन पर संकट मंडराने लगता है।
लेकिन क्या समाज अब भी इस कड़वी हकीकत से आँखें मूँदकर बैठेगा? क्या यह सभ्यता की कसौटी पर खरे उतरने वाला कृत्य है?
क़ानून की ताकत और सामाजिक ज़िम्मेदारी
बाल विवाह कानूनी रूप से अपराध की श्रेणी में आता है। जो कोई भी इसमें लिप्त पाया जाता है—चाहे वह विवाह करवाने वाला हो, सहयोग करने वाला हो, या इसे बढ़ावा देने वाला हो—उस पर ₹1 लाख तक का जुर्माना और 2 साल की कैद का प्रावधान है। यह सज़ा किसी दिखावे के लिए नहीं, बल्कि समाज को यह बताने के लिए है कि अब बर्दाश्त करने का वक्त नहीं, बदलाव लाने का दौर है।
श्री जायसवाल ने लैंगिक अपराध से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) की विस्तृत जानकारी दी और बताया कि बच्चों को असुरक्षित स्पर्श, शारीरिक परिवर्तन और भावनात्मक बदलाव के प्रति जागरूक करना कितना आवश्यक है। आज का समय केवल किताबों से ज्ञान अर्जित करने का नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन की हकीकतों से रूबरू होने और उनसे लड़ने की समझ विकसित करने का भी है।
नशे की गिरफ्त और किशोर न्याय अधिनियम
बच्चों को नशे की बढ़ती लत से बचाने के लिए किशोर न्याय अधिनियम की धारा 77 और 78 को प्रभावी रूप से लागू किया जा रहा है। अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे को नशे का आदी बनाता है, नशे की खरीद-फरोख्त करवाता है या उसके साथ नशा करता है, तो उसे 2 साल की कैद या ₹1 लाख का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। आज शिक्षकों को केवल शैक्षणिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा का प्रहरी भी बनना होगा।
सवाल जो जवाब मांगते हैं
जब सूरजपुर की ज़मीन से यह आवाज़ उठी है कि बाल विवाह को खत्म करना है, तो क्या यह गूंज सिर्फ प्रशासनिक दायरों तक सीमित रहेगी, या समाज भी अपनी जिम्मेदारी समझेगा? क्या हम अपने बच्चों को उस भविष्य की ओर बढ़ने देंगे, जहाँ वे अपने निर्णय खुद ले सकें? क्या यह संभव नहीं कि हर घर में शिक्षा की लौ इतनी तेज़ जले कि बाल विवाह की परछाई भी उसके आसपास न भटके।
इस अभियान की असली कामयाबी तब होगी जब हर शिक्षक, हर माता-पिता और हर छात्र इस संकल्प को अपनी आत्मा से जोड़ ले। तभी सूरजपुर की फ़िज़ाओं में बचपन की किलकारियां और सपनों की परवाज़ एक नए सवेरे की दस्तक देगी।