ओडगी में पानी पर पहरा, हुकूमत खामोश – अब जनता करेगी फैसला!
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AMIR PATHAN
सूरजपुर।ओडगी :- यह कोई पुरानी दास्तान नहीं, बल्कि ओडगी की आज की कड़वी हकीकत है। एक ऐसी हकीकत, जो नल-जल योजना की खोखली हकीकत से पर्दा उठाती है। सरकार की योजनाएँ सिर्फ कागज़ों पर चल रही हैं और ज़मीन पर लोग प्यासे मर रहे हैं। जो टोंटी से पानी टपकना चाहिए, वहां सिर्फ बेबसी टपक रही है। लोग नल के नीचे बाल्टी लेकर खड़े हैं, लेकिन पानी की एक बूंद तक नसीब नहीं।
पानी पर सत्ता का पहरा!
- प्रशासन की अनदेखी, जनता प्यास से बेहाल।
- नल-जल योजना बनी सफेद हाथी, जनता के हिस्से आया सिर्फ धोखा।
- बोरिंग सूख गए, टैंकर का पता नहीं – ये किसका षड्यंत्र है?
- ओडगी का पानी आखिर कहाँ जा रहा है? बड़ा सवाल!
- जनता का इन्तजार खत्म, अब होगा आंदोलन!
सूखा नहीं, सरकारी सिस्टम की साजिश!
ओडगी में पानी नहीं है, पर नेता और अफसर ऐश कर रहे हैं। सरकारी फाइलों में पानी टनों में बह रहा है, लेकिन हकीकत में जनता को एक लोटा पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। हुकूमत ने ऐसा कुचक्र रचा कि जनता प्यास से बिलबिला रही है और वो चुपचाप अपनी कुर्सियां गर्म कर रहे हैं। ये प्यास सिर्फ पानी की नहीं, बल्कि इंसाफ की भी है। सवाल यह है कि जनता कब तक तरसेगी?
“ये कैसी हुकूमत है जो पानी तक नहीं दे सकती? क्या प्यास भी अब जुर्म हो गई है?”
नियम-कानून सिर्फ किताबों में, हक की लड़ाई अब सड़क पर होगी!
संविधान हर नागरिक को स्वच्छ पेयजल का अधिकार देता है, लेकिन ओडगी में यह अधिकार सिर्फ किताबों तक सीमित है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कई फैसले साफ कहते हैं कि पानी हर नागरिक का मौलिक अधिकार है, लेकिन सरकार की नीतियाँ शायद कहती हैं कि यह सिर्फ ‘वोट बैंक’ का हिस्सा है। क्या जनता को अब अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा?
अस्पताल में पानी नहीं, स्कूलों में प्यासे बच्चे – क्या यही विकास है?
ओडगी के अस्पतालों में मरीजों को दवाई से पहले पानी की जरूरत है, लेकिन वहां सिर्फ सन्नाटा है। स्कूलों में बच्चे पानी के लिए तरस रहे हैं, पर प्रशासन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सरकारी नल-जल योजना के करोड़ों रुपये कहाँ गए? कौन इस लूट का जिम्मेदार है?
“हुकूमत का चेहरा देखो, ये खामोश क्यों है? पानी के सौदागरों से कोई सवाल क्यों नहीं है?”
अब फैसला जनता का – पानी चाहिए या सरकार की कुर्सी हिलानी पड़ेगी?
अब समय आ गया है कि जनता सड़कों पर उतरे और अपना हक छीने। ओडगी के लोग अब सिर्फ ज्ञापन नहीं देंगे, बल्कि इंसाफ लेंगे। जनता को अब जवाब चाहिए, और अगर जवाब नहीं मिला, तो सड़कों पर एक ऐसा तूफान उठेगा जो हुकूमत के किले हिला देगा।
अब जनता बोलेगी!
- पानी चाहिए, बहाने नहीं!
- सिस्टम की चुप्पी अब बर्दाश्त नहीं होगी!
- टैंकर कहाँ गए, बोरिंग क्यों सूख गए – जवाब दो!
- नल-जल योजना का हिसाब दो!
- जनता की प्यास बुझाओ या सत्ता छोड़ो!
अब देखना यह है कि सरकार जागती है या जनता को जगाने के लिए कोई बड़ा कदम उठाना पड़ेगा। इस बार सवाल सिर्फ पानी का नहीं, बल्कि हक का है!
जनता के गुस्से और पीड़ा की जुबानी
स्थानीय निवासी:
“अब पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रही जनता का सब्र जवाब देने लगा है। लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है और यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई तो वे चक्का जाम जैसे उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। हम ब्लॉक मुख्यालय में रहते हैं, लेकिन स्थिति यह है कि नहाना तो छोड़िए, पीने तक को साफ पानी नहीं है। बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों के लिए यह स्थिति बेहद खतरनाक है।”
,महिला समूह की सदस्य:
“रोज बाल्टी लेकर लाइन में लगना पड़ता है, फिर भी कभी-कभी खाली हाथ लौटना पड़ता है। प्रशासन की चुप्पी अब असहनीय हो चुकी है। आखिर कब तक हम पानी के लिए यूँ ही तरसते रहेंगे?”
एक वरिष्ठ नागरिक:
“हमने ज़िंदगी गुजार दी, लेकिन ऐसा जल संकट कभी नहीं देखा। यह प्रशासन की नाकामी का सबसे बड़ा सबूत है। क्या अब हमें पानी के लिए भी लड़ाई लड़नी पड़ेगी?”