चुनावी खेल का ‘ब्लैक मैजिक’! वोटिंग के नाम पर ‘धोखा’, बैलेट पेपर में गड़बड़ी या साज़िश? – हंगामा, नारेबाज़ी, प्रशासन में भूचाल!
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सूरजपुर | हिंदुस्तान के लोकतंत्र पर जब-जब सवाल उठे हैं, तब-तब किसी न किसी को इसका फायदा मिला है। लेकिन इस बार सूरजपुर में जो हुआ, वह सिर्फ लापरवाही नहीं – बल्कि चुनावी तंत्र पर एक ज़हरीला तमाचा है! रामानुजनगर के पंचवटी मतदान केंद्र पर लोकतंत्र की बुनियाद को हिला देने वाली घटना सामने आई। मतदाताओं को गलत बैलेट पेपर थमाकर वोट डलवा दिए गए! जैसे ही इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ, मतदान केंद्र रणभूमि बन गया।
“चुनावी गड़बड़ी! मतदाताओं ने जिसे चुना ही नहीं, बैलेट पेपर में वही दर्ज!”
वोट डालने पहुंचे मतदाताओं को जब एहसास हुआ कि बैलेट पेपर पर उनके क्षेत्र का नाम ही नहीं है, तो हंगामा मच गया, गुस्से में तमतमाए लोगों ने प्रशासन को घेर लिया। जांच हुई तो सामने आया कि क्षेत्र क्रमांक 15 के वोटरों को क्षेत्र क्रमांक 14 के बैलेट पेपर दिए जा रहे थे! मतलब – जिस उम्मीदवार को चुना ही नहीं, उसका नाम वोटिंग लिस्ट में चढ़ गया!
अब सवाल ये उठता है कि ये सिर्फ प्रशासन की गलती थी या फिर सत्ता के गलियारों में रची गई एक ख़ामोश साज़िश? इस अनदेखी के पीछे कोई बड़ा ‘खेल’ तो नहीं?
मतदान केंद्र पर बवाल, अफ़रा-तफ़री और प्रशासन के छूटे पसीने
मतदान केंद्र पर लोग भड़क उठे, नारेबाज़ी होने लगी। पुलिस को दखल देना पड़ा, लेकिन गुस्साए मतदाता सत्ता की इस चाल को बेनक़ाब करने पर उतारू थे। स्थिति इतनी बेकाबू हो गई कि जिले के एसपी और कलेक्टर को मौके पर पहुंचना पड़ा।
हंगामे के बाद चुनाव आयोग ने फौरन एक्शन लिया और पीठासीन अधिकारी को बर्खास्त कर दिया। लेकिन क्या सिर्फ एक अधिकारी को हटाना इस घोटाले का हल है? जिन मतदाताओं ने गलत बैलेट पेपर पर वोट डाल दिया, क्या उनकी लोकतांत्रिक शक्ति को ध्वस्त कर दिया गया?
राजनीति की ‘शतरंज’ या ईमानदार गलती?
अब ये बहस ज़ोर पकड़ रही है कि यह चुनावी धांधली थी या फिर प्रशासन की ऐतिहासिक “हमाक़त? राजनीतिक गलियारों में सरगोशियां तेज़ हैं –
आखिर कैसे दो अलग-अलग क्षेत्रों के बैलेट पेपर आपस में बदल गए?
कहीं ये किसी खास उम्मीदवार को जीत दिलाने की सोची-समझी चाल तो नहीं?
क्या लोकतंत्र अब सिर्फ एक ‘मैनेजमेंट गेम’ बन चुका है?
चुनाव आयोग ने इस शर्मनाक कांड की जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन बड़ा सवाल ये है – क्या इस लोकतांत्रिक अपराध के गुनहगारों पर कार्रवाई होगी, या फिर मामला दबा दिया जाएगा?
जनता के सवाल, जिनका जवाब सत्ता को देना ही होगा
सूरजपुर की इस घटना ने एक बार फिर लोकतंत्र पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। अगर चुनावों में इस तरह का ‘ब्लैक मैजिक’ चलता रहा, तो क्या आने वाले दिनों में जनता के वोट की कोई कीमत बचेगी? या फिर यह सब एक स्क्रिप्टेड ड्रामा है, जहां सत्ता का मोहरा बनने के लिए मतदाता सिर्फ एक बेजान आंकड़ा रह गया है?
सवाल उठता है कि क्या चुनाव आयोग अब भी इस लापरवाही को एक सामान्य त्रुटि मानकर फाइल बंद कर देगा? या फिर इस चुनावी खेल के असली खिलाड़ी बेनक़ाब होंगे? सूरजपुर में जो हुआ, वह सिर्फ एक घटना नहीं – यह लोकतंत्र की आत्मा पर चोट है, जिसका हिसाब सत्ता को देना ही होगा!