डूबती ज़िंदगियाँ और जागता प्रशासन: अवैध खनन पर कार्रवाई या दिखावा?
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AMIR PATHAN
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सूरजपुर। “जो चले गए, वो अब लौटकर नहीं आते… लेकिन उनकी मौतें यूं बेमौत नहीं जानी चाहिए।”
यह जुमला अब सूरजपुर के गाँवों में सिर्फ मातम नहीं, एक चीख बनकर गूंज रहा है। हर उस परिवार की चीख, जिसने अपने बेटे, भाई या किसी अपने को नदी में डूबते देखा… और आज भी ये सवाल पूछ रहा है—क्या ये महज़ हादसे हैं या किसी सिस्टम की सुनियोजित लापरवाही?
साफ बात ये है कि सूरजपुर ज़िले में रेत माफिया बेखौफ़ है और प्रशासन अब भी ‘दिखावटी छापेमारी’ की नीति से बाहर नहीं निकल पाया है।
रेत के गड्ढों में डूबते सपने, कौन है ज़िम्मेदार?
ग्रामीण इलाकों में नदियों की कोख से रातों-रात निकाली जा रही रेत अब खून पी रही है। खनन माफिया बालू निकालने के चक्कर में नदियों में ऐसे गहरे गड्ढे बना देते हैं, जिनमें हर साल न जाने कितनी ज़िंदगियाँ समा जाती हैं।
लोग कह रहे हैं—
“ना बोर्ड लगा, ना चेतावनी, बस चलती रहती है मशीनें और चुपचाप आती-जाती ट्रैक्टरें…”

लेकिन अब पानी सिर से ऊपर जा चुका है।
13 अप्रैल को प्रशासन ने ग्राम राजापुर में दो अवैध रेत वाहनों को पकड़ा और बड़ी-बड़ी बातें कर दीं। इससे पहले 8 अप्रैल को भी खड़गवाँकला, राजापुर और कल्याणपुर में कुछ वाहन जब्त किए गए थे। खनिज विभाग और राजस्व टीम ने कंधे से कंधा मिलाकर कार्रवाई की… लेकिन जनभावनाएँ कह रही हैं—

“ये सब सिर्फ आंख में धूल झोंकने की कवायद है।”
जनचर्चा में उठते सवाल —
“दर्द कहीं और, इलाज कहीं और”
ये लाइन अब सूरजपुर में चर्चा का केंद्र बन चुकी है।
लोग पूछ रहे हैं—
- आखिर ये गड्ढे बन कैसे रहे हैं?
- कौन दे रहा है इन माफियाओं को संरक्षण?
- रेत माफिया की मिलीभगत में कौन-कौन शामिल हैं?
- कार्रवाई सिर्फ हादसे के बाद ही क्यों होती है?
प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल?
जनता का भरोसा डगमगाने लगा है। सबको पता है, कार्रवाई सिर्फ प्रेस रिलीज़ तक सीमित है। सवाल वही पुराना है—
“क्या अब भी कुछ बदलेगा?”
या फिर
“ये भी एक और हादसे की तरह भूल जाएगा?”
“अब उम्मीद बाकी है…”
माँओं की सूनी गोद, बहनों की सिसकियाँ और पिता की झुकी कमर यही कह रही है—
“ये सिर्फ एक मौत नहीं थी, ये सिस्टम की बेशर्मी का आईना था।”
अब सूरजपुर के लोग सवाल नहीं, जवाब मांग रहे हैं।
अगर प्रशासन वाकई जाग चुका है, तो वह बताए—
- क्या रेत खनन के ठेकेदारों पर आपराधिक केस दर्ज हुए?
- क्या नदी के किनारे चेतावनी बोर्ड लगाए गए?
- क्या गाँव वालों को बचाव के लिए कोई वैकल्पिक साधन दिया गया?
वरना… फिर कोई डूबेगा, फिर एक और प्रेस विज्ञप्ति आएगी, फिर मातम बहेगा… और फिर सब कुछ ‘नदी की रेत’ की तरह बह जाएगा!
अब समय है कि सूरजपुर की मिट्टी इंसाफ मांग रही है, और ये इंसाफ सिर्फ ज़बानी जमा खर्च से नहीं मिलेगा — इसके लिए प्रशासन को माफिया की गर्दन तक हाथ पहुंचाना होगा?