ब्रेकिंग न्यूज़ | पूर्व CMHO समेत 5 पर धोखाधड़ी का केस दर्ज..
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AMIR PATHAN
सूरजपुर | जिला अस्पताल सूरजपुर में ऑक्सीजन प्लांट लगाने के नाम पर बड़ा खेल हो गया है। जिस फर्म को टेंडर दिया गया, उसे तो एक पैसा नहीं मिला, लेकिन उसके जैसे नाम वाली दूसरी फर्म के खाते में 83 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए गए। अब इस गड़बड़ी की गूंज पुलिस तक जा पहुंची है। जांच में मामला सही निकला तो सूरजपुर कोतवाली पुलिस ने तत्कालीन CMHO डॉ. आरएस सिंह समेत 5 लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज कर लिया है।
क्या है पूरा मामला?
रायपुर की यूनिक इंडिया कंपनी के संचालक जयंत चौधरी ने 2021 में सूरजपुर जिला अस्पताल में एमजीपीएस (Medical Gas Pipeline System) लगाने के लिए निविदा भरी थी। 13 सितंबर 2021 को उन्हें 83 लाख 21 हजार रुपये में काम करने का ऑर्डर भी दे दिया गया। इसके बाद जयंत चौधरी ने अपने स्तर पर सारे जरूरी उपकरण अस्पताल भेज दिए। लेकिन जब भुगतान की बारी आई तो उन्हें महीनों टहलाया गया।
जयंत चौधरी बताते हैं कि उन्होंने कई बार CMHO ऑफिस के चक्कर काटे, लेकिन उन्हें हर बार टाल दिया गया। बाद में जब जानकारी निकाली तो होश उड़ गए—उनकी ही कंपनी के जैसे नाम वाली दंतेवाड़ा की दूसरी यूनिक इंडिया फर्म को पैसे दे दिए गए थे।
नाम एक-जैसा, काम अलग
सूरजपुर अस्पताल में जो उपकरण लगे, वो रायपुर की यूनिक इंडिया कंपनी ने भेजे थे। लेकिन भुगतान दंतेवाड़ा की यूनिक इंडिया के प्रोपराइटर आशीष कुमार बोस के नाम कर दिया गया। एक्सिस बैंक खाते में दो किस्तों में कुल 83 लाख 21 हजार रुपये भेजे गए—पहली किस्त 50 लाख की 5 जनवरी 2022 को और दूसरी किस्त 31 लाख 85 हजार 881 रुपये की 31 जनवरी को।
IG के दखल के बाद हिली प्रशासनिक मशीनरी
जयंत चौधरी ने जब थक-हारकर सरगुजा रेंज के IG से गुहार लगाई, तब जाकर जांच शुरू हुई। सूरजपुर के SSP ने शिकायत की गहराई से जांच करवाई। जांच में सामने आया कि मामला केवल गलती का नहीं, बल्कि सोची-समझी साजिश थी।
इनके खिलाफ केस दर्ज
- डॉ. आरएस सिंह, पूर्व CMHO, जिला चिकित्सालय सूरजपुर
- जेम्स कुजूर, लिपिक सहायक वर्ग-2
- विजय सिन्हा, सेवानिवृत्त लेखपाल
- सकिरन दास, फार्मासिस्ट सहायक ग्रेड-2
- आशीष कुमार बोस, फर्जी भुगतान पाने वाली यूनिक इंडिया, दंतेवाड़ा के प्रोपराइटर
इन सभी पर IPC की धारा 419, 467, 468 , 471, 120B (साजिश रचना) के तहत अपराध दर्ज किया गया है।
अब क्या होगा?
पुलिस अब पूरे मामले की तह तक जाएगी—कौन-कौन शामिल थे, पैसा कहां गया, और किसके कहने पर भुगतान हुआ। शुरुआती जांच में ये बात साफ हो चुकी है कि सरकारी सिस्टम में अंदर तक साजिश रची गई थी, जिससे असली फर्म को ठगा गया और फर्जी फर्म ने करोड़ों की कमाई कर ली।
बड़ा सवाल
अब सवाल उठता है कि जब असली फर्म ने टेंडर जीता, उपकरण भेजे, और काम किया—तो फिर पैसे किसी और को कैसे मिल गए? क्या सिस्टम में जानबूझकर फर्म के नाम मिलते-जुलते रखवाए गए? क्या GEM पोर्टल में भी मिलीभगत थी? क्या बाकी जिलों में भी इसी तरह का खेल चल रहा है?
आगे की कार्रवाई?
पुलिस के मुताबिक, दस्तावेज खंगाले जा रहे हैं, बैंक ट्रांजैक्शन का रिकॉर्ड जुटाया जा रहा है और जल्द ही आरोपियों से पूछताछ की जाएगी।
फिलहाल सूरजपुर के अस्पताल में लगे ऑक्सीजन प्लांट का सच यही है कि जिसने लगाया, उसे फूटी कौड़ी नहीं मिली… और जिसने कुछ नहीं किया, उसकी जेब भर गई।