बिग ब्रेकिंग : सूरजपुर प्रशासन का ‘मास्टरस्ट्रोक’—ट्रांसफर ऑर्डर में अफसरों को भेजा ‘अज्ञात नगरों’ में, अब खोजें रास्ता!
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(होली हुड़दंग विशेष रिपोर्ट )
सूरजपुर। इस बार प्रशासन ने होली पर ऐसा रंग उड़ेला है कि अफसरों को न अपनी कुर्सी दिख रही है, न अपना ओहदा। तबादलों की जो सूची जारी हुई है, उसे देखकर कलेक्टर से लेकर चपरासी तक सबकी आंखें चौड़ी हो गईं और कान खड़े!
कोई ‘भूलभुलैयानगर’ भेजा गया है, तो किसी को ‘गहरी खाई तहसील’ में तैनात कर दिया गया। ‘पातालपुर’ का एसपी कौन बनेगा, इस पर बहस गर्म है, लेकिन असली सवाल तो ये है—“हुजूर, ये जगहें हैं कहां?”
सरकारी गलियारों में सन्नाटा है, बाबू खामोश हैं, और अफसरों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही हैं। आदेश पत्र तो जारी हो गया, लेकिन गूगल मैप भी इन जगहों का रास्ता बताने से मना कर रहा है! अब तो हर अफसर की हालत ऐसी है कि अगर किसी ने ‘तबादला’ शब्द भी बोल दिया, तो वे अपना होशो-हवास खो बैठेंगे!
कलेक्टर एस. जयवर्धन: “हुजूर, ‘भूलभुलैयानगर’ भेज रहे हो, पर लौटने की कोई गारंटी है?”
सूरजपुर के कलेक्टर श्री एस. जयवर्धन को जब फाइल पकड़ा दी गई, तो पहले उन्होंने चश्मा ठीक किया, फिर माथे पर हाथ मारा और बोले—
“ये तो वही जगह हुई जहां जाने वाले की सिर्फ यादें बचती हैं! हुजूर, ये तबादला है या कोई पहेली?”
एसपी प्रशांत कुमार ठाकुर: “‘पातालपुर’ में जाना है? हुजूर, मैं नागलोक नहीं संभाल सकता!”
एसपी श्री प्रशांत कुमार ठाकुर को ‘पातालपुर’ की चाबी पकड़ाई गई। आदेश पढ़ते ही उनकी सांस फूल गई—
“नाम से ही लग रहा है कि वहां पहुंचने के लिए सीधा धरती के सातवें तल में जाना पड़ेगा! हुजूर, ये ट्रांसफर है या नागराज की कहानियों से निकला कोई जादू?”
सीईओ जिला पंचायत नंदनी कमलेश साहू: “‘गुमनामगढ़’ भेज दिया, पर वहां इंसान भी रहते हैं?”
श्रीमती नंदनी कमलेश साहू को जब ‘गुमनामगढ़’ का फरमान थमाया गया, तो वे हंसते-हंसते जमीन पर लोट गईं—
“हुजूर, नाम से ही लग रहा है कि वहां जाने के बाद आदमी खुद ही गुमनाम हो जाता होगा! अब मैं वहां पंचायत चलाऊं या खुद को ढूंढूं?”
वनमंडला अधिकारी पंकज कमल: “‘लुप्तपुर’ भेजा है, हुजूर, अब हम इतिहास बन जाएंगे!”
श्री पंकज कमल ने जैसे ही ‘लुप्तपुर’ का नाम पढ़ा, तो ठंडी सांस छोड़ते हुए बोले—
“हुजूर, जो भी वहां गया, वो लुप्त ही हो गया! अब हमारी कहानी भी इतिहास में दर्ज हो जाएगी!”
मुख्य चिकित्सा अधिकारी कपिल देव पैकारा: “‘अलोपविला’! हुजूर, मरीज मिलेगा या सब गायब होंगे?”
श्री कपिल देव पैकारा को ‘अलोपविला’ भेजा गया, तो उन्होंने माथे पर हाथ मारते हुए कहा—
“डॉक्टर के बिना अस्पताल सुना था, लेकिन बिना मरीज का अस्पताल पहली बार सुना है! हुजूर, वहां इलाज करूं या खुद को खोजूं?”
एडिशनल एसपी संतोष महतो: “‘चकरघिन्नीगंज’ में इंसाफ दूंगा या खुद ही घूमता रहूंगा?”
श्री संतोष महतो की पोस्टिंग ‘चकरघिन्नीगंज’ में हुई। उन्होंने आदेश पढ़ते ही ठहाका लगाया—
“नाम से ही लग रहा है कि वहां जाने वाला आदमी गोल-गोल घूमता रहेगा! इंसाफ दूंगा या खुद चक्कर काटूंगा?”
एसडीएम शिवानी जायसवाल: “‘फितूरपुर’! नाम से ही लग रहा है कि वहां सबका दिमाग खराब रहता होगा!”
श्रीमती शिवानी जायसवाल को ‘फितूरपुर’ का फरमान मिला, तो उन्होंने आदेश को चूड़ी की तरह हाथ में घुमाते हुए कहा—
“ये तबादला है या मेंटल स्ट्रेस टेस्ट? अब तो नाम सुनकर ही लग रहा है कि वहां जाने के बाद मेरा दिमाग उलटा लटका मिलेगा!”
तहसीलदार समीर शर्मा: “‘लुप्तपुर’ जा रहा हूँ, हुजूर, अब हम इतिहास बन जाएंगे!”
श्री समीर शर्मा ने आदेश पढ़ते ही ठंडी सांस छोड़ दी—
“हुजूर, ये जगह तो नाम से ही कह रही है कि यहां जिसने कदम रखा, वो लुप्त हो गया! अब हम भी इतिहास में दर्ज हो जाएंगे!”
पीडब्ल्यूडी अधिकारी कल्याण सिंह पोर्ते: “‘ढहावानगर’! हुजूर, सड़क बनाऊं या खुद गिर जाऊं?”
श्री कल्याण सिंह पोर्ते को ‘ढहावानगर’ भेजा गया। उन्होंने आदेश पढ़ते ही माथे पर हाथ मारा—
“नाम से ही लग रहा है कि वहां पहुंचने के बाद आदमी या तो सड़क बनाएगा, या खुद सड़क के नीचे चला जाएगा!”
कोतवाली प्रभारी विमलेश दुबे: “‘गुलगप्पानगर’ भेजा है, वहां कानून चलाऊं या पानीपुरी ठेलूं?”
श्री विमलेश दुबे की पोस्टिंग ‘गुलगप्पानगर’ में हुई। आदेश पढ़ते ही उन्होंने ठहाका लगाया और बोले—
“नाम सुनकर लग रहा है कि वहां कानून कम और पानीपुरी ज्यादा चलती होगी! चलो, अब पुलिस की नौकरी के साथ चाट का ठेला भी संभाल लूंगा!”
जनपद सीईओ विनोद सिंह: “‘खोयानगर’! हुजूर, ये शहर मिलेगा भी या खो चुका है?”
श्री विनोद सिंह को ‘खोयानगर’ भेजा गया। उन्होंने सिर पकड़ते हुए कहा—
“हुजूर, ये जगह तो नाम से ही गुम है! अब हम वहां विकास करेंगे या अपने पद का पोस्टमॉर्टम?”
सरकारी गलियारों में हड़कंप: “ये तबादले हैं या जादू-टोना?”
अब सूरजपुर में हर अफसर एक ही सवाल कर रहा है—“हुजूर, ये ट्रांसफर ऑर्डर है या तिलिस्मी किताब?”
कोई गूगल पर ‘गुमनामगढ़’ खोज रहा है, कोई ‘भूलभुलैयानगर’ का रास्ता पूछ रहा है, तो कोई ‘पातालपुर’ की गहराई नाप रहा है। सरकारी दफ्तरों में अफसरों का ध्यान अब फाइलों से हटकर अपने नए ठिकानों की खोज में लग गया है।
ट्रांसफर जारी आदेश होली सरकार
कलेक्टर एस. जयवर्धन → ‘भूलभुलैयानगर’ (रास्ता अभी तक अज्ञात!
🔹एसपी प्रशांत कुमार ठाकुर → ‘पातालपुर’ (प्रवेश निषेध, वापसी संदिग्ध!)
🔹 मुख्य कार्यपालन अधिकारी नंदनी कमलेश साहू → ‘गुमनामगढ़’ (खुद को खोजते रह जाएंगे!)
🔹 वनमंडला अधिकारी – पंकज कमल → ‘लुप्तपुर’ (एक बार गए तो वापसी की गारंटी नहीं!)
🔹 मुख्य चिकित्सा अधिकारी कपिल देव पैकारा → ‘अलोपविला’ (मरीज खोजने निकलेंगे, खुद गायब हो जाएंगे!)
🔹 एडिशनल एसपी संतोष महतो → ‘चकरघिन्नीगंज’ (अब बस चक्कर ही लगेंगे!)
🔹 एसडीएम शिवानी जायसवाल → ‘फितूरपुर’ (जहां जाने के बाद आदमी खुद को भूल जाता है!)
🔹 तहसीलदार समीर शर्मा → ‘लुप्तपुर’ (इतिहास बनने की ओर पहला कदम!)
🔹 पीडब्ल्यूडी अधिकारी कल्याण सिंह पोर्ते → ‘ढहावानगर’ (सड़क बनेगी या खुद गिरेंगे?)
🔹 कोतवाली प्रभारी विमलेश दुबे → ‘गुलगप्पानगर’ (अब पुलिसिंग कम, पानीपुरी ज्यादा चलेगी!)
🔹 जनपद सीईओ विनोद सिंह → ‘खोयानगर’ (नक्शे में जगह मिले तो बताना!)
होली के रंग में घुला प्रशासन का अजब-गजब फैसला—जो सुने, वो ठहाके लगाए!
अंत में बस यही कहना है—
“हुजूर, बुरा न मानो, होली है!”