सावन का पहला सोमवार शिवालय में लगा भक्तों का लगा तांता ….
1 min readप्रतापपुर
सुरजपुर जिले के प्रतापपुर से पांच किलोमीटर दूर शिवपुर में स्थित अर्द्घनारीश्वर शिवलिंग शिवालय,, शिव और शक्ति के संगम का प्रतीक है। यहां स्थापित प्राचीन शिवलिंग में ही माता सती और महागौरी विराजमान हैं, यही वजह है कि इन्हें अर्द्घनारीश्वर शिव कहा जाता है। पहाड़ों के नीचे स्थित इस शिवलिंग का अभिषेक अविरल जलधारा करती है। पहाड़ से निकलने वाला जल हर समय शिवलिंग का अभिषेक करते हुए बहता है, यही वजह है कि इन्हें जलेश्वर महादेव भी कहते हैं। इस मंदिर में विराजे शिवलिंग की कई मान्यताएं हैं, ऐसी मान्यता है कि प्रतापपुर के राजा प्रताप सिंह को स्वप्न में शिवपुर स्थित पहाड़ी के भीतर इस शिवलिंग के दर्शन हुए थे, जिसके बाद राजा ने पहाड़ को खोदवाया था। खोदाई में यह शिवलिंग मिला और इसी समय से ही पहाड़ से जलधारा बहनी शुरू हुई, जो अब तक बह रही है।शिवपुर जिले का ही नही बल्कि छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यो के श्रद्धालुओं के लिए भी आस्था का केंद्र है,, यहां श्रद्धालु अम्बिकापुर के शंकर घाट और सारासौर से जल उठाकर लगभग 45 किमी की दूरी तय कर शिवपुर में जलाभिषेक करते हैं,, यहां उत्तरप्रदेश,बिहार,झारखण्ड और मध्यप्रदेश से श्रद्धालु आते हैं और बाबा भोलेनाथ पर जल अभिषेक करके अपनी मन मांगी मुराद पूरी करते हैं,,
12 महीने एक ही रफ्तार से बहती हैं धाराएं-
शिव भक्त व पौराणिक इतिहास की जानकारी रखने वाले सुमित सोनी बताते हैं कि मंदिर में नाग-नागिन का जोड़ा रहा करता था, लेकिन जंगल की आग में एक दिन नाग-नागिन के जोड़े में से एक की मृत्यु हो गई, जिसके बाद भगवान शिव के अभिषेक के लिए पहाड़ से निकलने वाली जलधारा बंद हो गई थी, लेकिन राजा ने फिर भगवान शिव का दुग्धाभिषेक किया जिसके बाद पहाड़ से जलधारा दोबारा प्रवाहित होनी शुरू हो गई। गौरतलब है कि यह धारा बारहों महीने बराबर रफ्तार में बहती है न ही बरसात में इसमें सैलाब आता है और न ही गर्मी में यह सूखती है। पूर्व में अविरल रुप से बहती हुई इस धारा से एक नदी बनकर बहती थी जिसे बाद में मोड़कर ग्राम खजूरी में सिंचाई के लिए बनाए गए बांध से जोड़ दिया गया। इस पहाड़ी से निकलने वाली यह जलधारा प्राचीन काल से ही रहस्य बनी हुई है। कई भूगर्भ शास्त्री इस जल के स्रोत का पता लगाने आए पर लाख कोशिशों के बावजूद जल के स्रोत का पता लगाने में असफल रहे।
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