रेल गुज़र गई, गेट अटका रहा… सूरजपुर में फंसी एम्बुलेंस, मरीज तड़पते रहे और प्रशासन खामोश तमाशबीन!
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AMIR PATHAN
सूरजपुर, 16 अप्रैल |
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में मंगलवार को जो मंजर दिखा, उसने न सिर्फ सिस्टम की पोल खोल दी, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि आम आदमी की ज़िंदगी अब रेलवे के गेट सिग्नल और अफसरों की नींद के भरोसे है।
भैयाथान-सूरजपुर मुख्य मार्ग पर स्थित रेलवे क्रॉसिंग पर करीब एक घंटे तक लोगों का पसीना सुख गया – वो भी चिलचिलाती दोपहरी में, जब ऊपर से सूरज झुलसा रहा था और नीचे रेलवे का गेट अटका पड़ा था।

बात सिर्फ ट्रैफिक जाम की नहीं थी जनाब… बात उस एम्बुलेंस की थी, जिनमें ज़िंदगी और मौत से जूझते मरीज फंसे हुए थे – एक स्ट्रोक का मरीज, दूसरी ज़हर खाई महिला और तीसरी बेहोश युवती। लेकिन गेट था कि खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था। वजह? सिग्नल में तकनीकी खराबी!
रेल तो गुजर चुकी थी, लेकिन गेट खुला नहीं…
दोपहर करीब 12 बजे परसा-केते से अदानी ग्रुप की कोयला लदी मालगाड़ी गुजरी। उसके गुजरने के बाद भी रेलवे गेट नहीं खुला। करीब एक बजे तक पूरा रास्ता जाम में तब्दील हो गया। गर्मी से लोग बेहाल, गाड़ियों की लंबी कतार, एंबुलेंस में कराहते मरीज और रेलवे कर्मचारी नदारद!
करीब 45 मिनट तक जब जनता का सब्र जवाब दे गया, तब जाकर रेलवे का अमला मौके पर दौड़ता-हांफता पहुंचा। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मरीजों को वैकल्पिक रास्ते से जिला अस्पताल भेजा गया। ज़रा सोचिए, अगर इनमें से किसी की जान चली जाती तो उसका जिम्मेदार कौन होता? रेलवे? जिला प्रशासन? या फिर खामोश जनप्रतिनिधि?

यह कोई पहली बार नहीं…
यह पहली घटना नहीं है। स्थानीय लोग बता रहे हैं कि इस रेलवे फाटक की ऐसी ‘हरकतें’ अक्सर देखने को मिलती हैं। कभी ट्रेन गुजरने के आधे घंटे बाद भी गेट नहीं खुलता, तो कभी सिग्नल फेल होने का बहाना बनाकर रेलवे के कर्मचारी हाथ खड़े कर देते हैं। लेकिन आज तक कोई कार्यवाही नहीं, कोई जवाबदेही नहीं।
ओवरब्रिज मांगते रह गए लोग, मगर…
इस फाटक पर ओवरब्रिज की मांग कोई नई नहीं। सालों से जनता चिट्ठियां लिख रही है, ज्ञापन दे रही है, आंदोलन तक हो चुके हैं – लेकिन न रेलवे प्रशासन जागा, न राज्य सरकार को फुर्सत मिली और न ही हमारे माननीय जनप्रतिनिधियों को सुध आई। हर साल बजट में बातें होती हैं, मगर ज़मीन पर कुछ नहीं उतरता।
प्रशासन है कहां?
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल जिला प्रशासन की भूमिका पर उठता है। क्या प्रशासन का काम सिर्फ बैठकों तक सीमित रह गया है? एंबुलेंस जाम में फंसी, मरीज तड़पते रहे – लेकिन न कोई ट्रैफिक व्यवस्था, न कोई वैकल्पिक प्लान, न कोई जिम्मेदारी तय। क्या सूरजपुर के अफसर सिर्फ फाइलों में ‘ऑल इज़ वेल’ लिखते रहेंगे?
जनता पूछ रही है…
- अगर कल को कोई बड़ी अनहोनी हो जाती है तो जिम्मेदार कौन होगा?
- क्या मरीजों की जान की कोई कीमत नहीं?
- कब तक ओवरब्रिज सिर्फ कागज़ों में बना रहेगा?
- क्या अदानी की मालगाड़ी के आगे आम आदमी की जान सस्ती हो गई है?
यह खबर सिर्फ एक रेलवे फाटक की नहीं, बल्कि उस सोते हुए सिस्टम की कहानी है, जहां ज़िंदगी एक सिग्नल की गुलाम बन चुकी है।
अब सवाल जनता का है – क्या कोई जवाब देगा?