“पीएमश्री स्कूल: कागजों में विकास, ज़मीन पर बेहाल!”
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AMIR PATHAN
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शिक्षा का मंदिर या सरकारी उदासीनता ?
बिश्रामपुर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट “पीएमश्री स्कूल” की हकीकत अगर देखनी हो, तो राजापुर के लकड़ापारा स्कूल में चले आइए। यह स्कूल आज एक ऐसी दर्द भरी कहानी सुना रहा है, जिसे सुनकर किसी का भी दिल पसीज जाए। सरकारी फाइलों में यह स्कूल चमकता-दमकता “आदर्श विद्यालय” है, मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है। यहां बच्चे सिर्फ पढ़ाई नहीं, बल्कि हर रोज़ सुविधाओं की जंग भी लड़ रहे हैं।

मासूम बच्चों का संघर्ष: प्यास, अंधेरा और तंगहाली
कहने को तो यहां 92 बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन पढ़ाते कौन हैं? एक प्रधान पाठक, एक सहायक शिक्षिका, एक व्यायाम शिक्षक और एक अटैचमेंट पर भेजे गए शिक्षक। यानी चार लोगों पर 92 बच्चों का भविष्य टिका हुआ है। यही नहीं, एक शिक्षिका आरती साहू प्रवास अवकाश पर हैं, तो बाकी जो बचे हैं, वे भी सरकारी सिस्टम के तले पिसते जा रहे हैं।

अब जरा पेयजल संकट पर आइए। गर्मी के मौसम में जब सूरज आग उगलता है, तब इन मासूम बच्चों को पानी के लिए तरसना पड़ता है। शौचालय की हालत इतनी बदतर है कि उसका इस्तेमाल करना किसी सज़ा से कम नहीं। ग्रामीणों का कहना है कि पुराने शौचालय को ‘थूक पालिश’ करके लाखों का बंदरबांट कर लिया गया।
शासन की बड़ी-बड़ी बातें, लेकिन हकीकत में सिफर
प्रधानमंत्री मोदी की इस योजना के तहत स्मार्ट क्लास, विज्ञान कक्ष, व्यवसायिक शिक्षा, एलईडी बल्ब, सेटअप के अनुसार शिक्षक, नए भवन और पूरी सुविधाएं दी जानी थीं। लेकिन क्या हुआ? यहां तो तीसरी कक्षा के बच्चे आज भी बरामदे में बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं!
“कागजों में कामयाब, ज़मीनी हकीकत में नाकाम”
पीएमश्री स्कूल को लेकर शासन-प्रशासन की बड़ी-बड़ी बातें सिर्फ फाइलों में चमक रही हैं। पीएमश्री जिला प्रभारी दिनेश द्विवेदी कहते हैं—
“कई कार्य पूरे कर लिए गए हैं। शिक्षकों की कमी के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। स्कूल के लिए 90 हजार रुपये शौचालय निर्माण और 1.91 लाख रुपये ग्रीन स्कूल व अन्य कार्यों के लिए भेजे गए हैं।”
अब सवाल ये उठता है कि अगर पैसा भेजा जा चुका है, तो सुविधाएं कहाँ हैं? अतिरिक्त कक्ष बना तो दिया गया, लेकिन क्या वह भूतों के लिए बना है?
“शिक्षकों की भर्ती हुई, लेकिन सेवा समाप्त भी हो गई!”
ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर (बीईओ) सुनील कुमार पोर्ते का कहना है—
“बीएड की एक शिक्षिका की भर्ती हुई थी, लेकिन उनकी सेवा समाप्त हो गई। अब डीएड शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, जल्द ही स्थिति सुधर जाएगी।”
यानी स्कूल में शिक्षक आए, लेकिन उतनी ही जल्दी चले भी गए! सवाल यह है कि जब नई भर्ती हो चुकी है, तो बच्चे आज भी बिना पर्याप्त शिक्षकों के क्यों पढ़ रहे हैं?
क्या ये स्कूल या सरकारी मजाक?
राजापुर पीएमश्री स्कूल की हालत देखकर एक बात साफ है—
“शासन की योजनाएं कागजों में जितनी सुंदर लगती हैं, जमीनी हकीकत में उतनी ही बेहाल होती हैं।”
ग्रामीणों का कहना है कि—
“हमने सोचा था कि पीएमश्री स्कूल बनने के बाद हमारे बच्चों को अच्छे माहौल में पढ़ाई मिलेगी। लेकिन यहां तो पुरानी बिल्डिंग पर बस नया रंग-रोगन करके पैसा डकार लिया गया।”
अब सवाल यह उठता है कि—
- क्या शासन-प्रशासन इस स्कूल की दुर्दशा से वाकिफ नहीं?
- क्या मासूम बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करना कोई अपराध नहीं?
- क्या यहां बैठने वाले अधिकारियों पर कोई कार्रवाई होगी?
यह खबर सिर्फ एक स्कूल की नहीं, बल्कि शासन की उस व्यवस्था की पोल खोलती है, जो सिर्फ भाषणों में ही शानदार लगती है। क्या इस खबर के बाद कोई अधिकारी हरकत में आएगा? या फिर यह खबर भी ‘कागजों में जांच’ बनकर रह जाएगी?
(अब देखना यह है कि शासन की नींद टूटती है या फिर यह स्कूल यूं ही सरकारी लापरवाही की गढ़ बना रहेगा!)