न डिग्री, न डिप्लोमा – फिर भी मरीजों का इलाज कर रहा स्वीपर!, बिहारपुर के सरकारी अस्पताल में !
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सूरजपुर | छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य तंत्र किस कदर बदहाल हो चुका है, इसकी जीती-जागती मिसाल बिहारपुर का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। यहां इलाज के नाम पर मरीजों की जिंदगी से खुलेआम खिलवाड़ हो रहा है। डॉक्टर और नर्स अस्पताल में मौजूद हैं, लेकिन इलाज कर कौन रहा है? एक स्वीपर!
जी हां, सुनने में अजीब लगे, लेकिन यही कड़वी सच्चाई है। बिहारपुर अस्पताल में सुगन सिंह नाम का शख्स, जो सरकारी रिकॉर्ड में स्वीपर के पद पर तैनात है, मरीजों की ड्रेसिंग कर रहा है, इलाज कर रहा है, पट्टियां बदल रहा है! न उसके पास मेडिकल डिग्री है, न कोई डिप्लोमा, फिर भी उसे अस्पताल प्रबंधन ने मरीजों की जान से खेलने की खुली छूट दे रखी है। क्या सरकार ने सरकारी अस्पतालों को प्रयोगशाला बना दिया है, जहां बिना पढ़ाई-लिखाई के कोई भी डॉक्टर बन सकता है?
प्रमोशन के नाम पर मरीजों की जिंदगी दांव पर!
अस्पताल प्रभारी सुरेश कुमार मिश्रा से जब इस बारे में पूछा गया, तो उनका जवाब और भी चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा, “पहले वह स्वीपर था, लेकिन अब उसे प्रमोशन देकर वार्ड बॉय बना दिया गया है। वह डॉक्टरों और नर्सों से सीखकर ड्रेसिंग कर रहा है!”
जरा सोचिए, अगर डॉक्टरों के साथ रहकर कोई इलाज करना सीख सकता है, तो फिर मेडिकल कॉलेजों की जरूरत ही क्या है? क्या सरकार अब डिग्री की अनिवार्यता खत्म कर सिर्फ अनुभव के आधार पर डॉक्टर तैयार करेगी? या फिर गरीबों की जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है कि उनके इलाज के लिए कोई भी झोलाछाप डॉक्टर खड़ा किया जा सकता है?
डॉक्टर आराम फरमा रहे, मरीजों पर सफाईकर्मी चला रहा कैंची!
बिहारपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में हालात इतने बदतर हैं कि ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर और नर्स आराम फरमाते हैं, और मरीजों की देखभाल का जिम्मा ऐसे लोगों के हाथों में सौंप दिया गया है, जो इस लायक ही नहीं हैं। क्या स्वास्थ्य विभाग किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है?
स्वास्थ्य विभाग की नींद कब खुलेगी?
जब इस घोर लापरवाही पर सूरजपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. केडी पैकरा से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा, “कोई भी स्वीपर या वार्ड बॉय मरीजों की ड्रेसिंग नहीं कर सकता। मामला मीडिया के जरिए संज्ञान में आया है, इसकी जांच होगी और दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।”
पर बड़ा सवाल यही है कि जब वर्षों से यह लापरवाही चल रही थी, तो अब तक स्वास्थ्य विभाग कहां सो रहा था? क्या किसी मरीज की जान चली जाती, तब सरकार की आंखें खुलतीं?
पहले भी हुई हैं मौतें, फिर भी प्रशासन खामोश!
यह पहली बार नहीं है जब बिहारपुर में स्वास्थ्य सेवाओं की लचर व्यवस्था के कारण लोगों की जान गई हो। पहले भी मलेरिया सहित कई बीमारियों से लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन प्रशासन हमेशा की तरह इस पर खामोश रहा। बिहारपुर के लोग सरकारी अस्पतालों पर भरोसा करें भी तो कैसे, जब यहां के डॉक्टर जिम्मेदारी लेने की बजाय अपने कर्तव्यों से भागते नजर आते हैं?
सरकारी अस्पतालों में कब तक चलेगा यह तमाशा?
अब सवाल यह उठता है कि क्या इस लापरवाही पर वास्तव में कोई ठोस कार्रवाई होगी, या यह मामला भी कुछ दिनों में ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा? क्या बिहारपुर के गरीब मरीजों की जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है कि कोई भी सफाईकर्मी या वार्ड बॉय उनका इलाज कर सकता है?
अगर सरकार को वाकई जनता की परवाह है, तो इसे सिर्फ जांच के बहाने फाइलों में दबाने की बजाय दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी। नहीं तो यह सिलसिला जारी रहेगा, मरीजों की जिंदगी से ऐसे ही खेल होता रहेगा और सरकारी अस्पतालों में मौतें होती रहेंगी!