भाजपा के गढ़ में कांग्रेस का ‘ब्लास्ट’, मंत्री के इलाके में सूपड़ा साफ – क्या कमज़ोर हो रही है पार्टी की पकड़?
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सूरजपुर। पंचायत चुनाव के पहले चरण में जो नतीजे आए हैं, उन्होंने प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी है। खासकर भाजपा के लिए यह सिर्फ एक हार नहीं, बल्कि उसकी जमीनी पकड़ कमजोर होने का संकेत है। मंत्री के अपने ही गृह जिले में भाजपा समर्थित सभी छह उम्मीदवारों की हार ने पार्टी के भीतर की गुटबाजी और रणनीतिक विफलताओं को पूरी तरह उजागर कर दिया है। यह सिर्फ एक चुनावी शिकस्त नहीं, बल्कि भाजपा के लिए “डेंजर सिग्नल” है कि अगर वक्त रहते पार्टी ने खुद को नहीं संभाला, तो आगामी चुनावों में बड़ा झटका लग सकता है।
नगरपालिका चुनाव की हार से उबर भी नहीं पाई थी भाजपा, अब पंचायत में भी डूब गई नैया!

चार दिन पहले नगरपालिका चुनाव में करारी शिकस्त के बाद भाजपा को उम्मीद थी कि पंचायत चुनाव में वह वापसी करेगी, लेकिन हुआ इसका उलटा! पहले चरण की सभी छह सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार धड़ाम हो गए। पार्टी ने चुनाव में “विकास” का कार्ड खेला, लेकिन जनता ने इसे सिरे से नकार दिया। नतीजे साफ इशारा कर रहे हैं कि भाजपा का विकास मॉडल कागज़ी है और ज़मीन पर जनता को इसका कोई फायदा नहीं दिखा।
भाजपा की हार की असली वजह – अंदरूनी गुटबाजी और बागियों की बगावत!
इस चुनाव में भाजपा के लिए सबसे बड़ा झटका अपने ही नेताओं की बगावत रही। पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों को न सिर्फ कांग्रेस, बल्कि खुद भाजपा के बागी नेताओं ने मात दे दी। गिरीश गुप्ता, किरण केराम और अन्य बागियों ने भाजपा को उसके ही खेल में मात दे दी। इससे यह साफ हो गया कि पार्टी के भीतर असंतोष इतना बढ़ चुका है कि कार्यकर्ता और स्थानीय नेता पार्टी नेतृत्व के फैसलों से पूरी तरह नाखुश हैं।
कांग्रेस की ताकतवर एंट्री, भाजपा को ‘नॉकआउट’ पंच!
पहले चरण के नतीजों में कांग्रेस ने चार सीटों पर बड़ी जीत दर्ज की, जबकि एक निर्दलीय प्रत्याशी ने भी कांग्रेस का समर्थन लेकर भाजपा को शिकस्त दी। योगेश्वरी लक्ष्मण राजवाड़े ने 3,000 से अधिक मतों से जीत दर्ज कर भाजपा को बड़ा झटका दिया। इसके अलावा, नरेंद्र यादव, अखिलेश प्रताप सिंह और निर्दलीय कलेश्वरी लखन कुर्रे ने भी अपने विरोधियों को करारी मात दी।
क्या भाजपा का वोट बैंक खिसक रहा है?
भाजपा की हार सिर्फ चुनावी गणित का मामला नहीं है, बल्कि यह एक बड़े राजनीतिक बदलाव की ओर इशारा कर रहा है। जनता ने साफ कर दिया है कि अब सिर्फ नारों और बड़े-बड़े वादों से वोट नहीं मिलेंगे, ज़मीनी विकास दिखाना होगा। ग्रामीण इलाकों में पार्टी की पकड़ ढीली पड़ रही है और कांग्रेस इसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही।
अब क्या करेगी भाजपा? कांग्रेस का विजय रथ रुकेगा या नहीं?
भाजपा के लिए यह “करो या मरो” की स्थिति है। अगर पार्टी जल्द ही अपनी रणनीति नहीं बदलेगी, तो यह हार का सिलसिला आगे भी जारी रह सकता है। दूसरी ओर, कांग्रेस इस जीत से उत्साहित होकर अब पूरी ताकत के साथ अगले चरणों की तैयारी में जुट गई है।
अब सवाल यह है—क्या भाजपा अपनी गुटबाजी और अंदरूनी कलह से उबरकर वापसी करेगी, या कांग्रेस इसे सत्ता परिवर्तन का संकेत मानते हुए अपनी पकड़ और मजबूत करेगी? पंचायत चुनाव का यह घमासान अभी खत्म नहीं हुआ है, लेकिन जो लहर उठी है, वह भाजपा के लिए खतरे की घंटी जरूर बजा रही है!