सूरजपुर पंचायत चुनाव: क्षेत्र क्रमांक 15 में ‘सियासी संग्राम’, जातीय समीकरणों और बगावत की लहर के बीच कौन बनेगा ‘राजा’?
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सूरजपुर | पंचायत चुनाव लोकतंत्र का उत्सव होते हैं, मगर जब सियासी दांव-पेंच हदें पार करने लगें, तो यह सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि ‘सत्ता का रण’ बन जाता है। सूरजपुर जिले का क्षेत्र क्रमांक 15 इस बार सिर्फ एक साधारण सीट नहीं, बल्कि सियासी महाभारत का युद्धक्षेत्र बन चुका है। जातीय समीकरणों की बिसात बिछ चुकी है, बड़े घरानों की साख दांव पर लगी है, और बगावत के सुरों ने राजनीति की हवा बदल दी है।
अब सवाल यह नहीं कि कौन जीतेगा, बल्कि यह है कि कौन और कैसे जिताया जाएगा?
‘कुर्सी की जंग’ में रिश्ते दांव पर, कौन होगा अगला सरपंच?
इस चुनाव में बड़े नाम और पारिवारिक राजनीति की विरासतें टकरा रही हैं। हर गली और हर चौपाल में चर्चा का एक ही मुद्दा है –क्षेत्र क्रमांक 15 का ताज किसे मिलेगा?
➡ भाजपा के वेद प्रकाश: पार्टी के मजबूत समर्थन के साथ मैदान में हैं, लेकिन जमीनी पकड़ को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
➡ कांग्रेस के सतवंत सिंह: पिता स्व. तिलेश्वर सिंह और बहन शशि सिंह की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश में हैं।
➡ निर्दलीय प्रत्याशी मोनिका सिंह: भाजपा की ही रेणुका सिंह की बेटी, जिन्होंने पार्टी के खिलाफ बगावत कर चुनावी अखाड़े में नई हलचल मचा दी है।
यह सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि एक ‘प्रतिष्ठा की लड़ाई’ है, जिसमें न सिर्फ सत्ता दांव पर लगी है, बल्कि नेताओं का भविष्य भी।
जातीय समीकरणों और सियासी चालों का महायुद्ध!
क्षेत्र क्रमांक 15 में जातीय समीकरणों का घातक खेल खेला जा रहा है। मतदाता दो गुटों में बंट चुके हैं—। ✅ एक तरफ वे, जो पुरानी राजनीतिक विरासतों पर भरोसा कर रहे हैं। ✅ दूसरी तरफ वे, जो नए नेतृत्व की मांग कर रहे हैं।
इस बार का चुनाव यह भी तय करेगा कि क्या यह इलाका पुराने प्रभावशाली परिवारों के हाथ में रहेगा, या मतदाता नई लकीर खीचेंगे?
बंद कमरों की बैठकों से लेकर चौराहों की गहमागहमी तक – ‘गुप्त रणनीतियां’ तय करेंगी नतीजे?गांव-गांव में गुप्त बैठकें चल रही हैं। देर रात तक सियासी रणनीति के पत्ते फेंके जा रहे हैं।
➡ कौन किसके साथ खड़ा है? ➡ कौन कब पाला बदल देगा? ➡ क्या वर्चस्व की इस लड़ाई में कोई नया चेहरा जीत का परचम लहराएगा?इन सवालों के जवाब अब सिर्फ मतपेटी में बंद हैं।
सूत्रों के मुताबिक साड़ी लो, दारू पीओ, हमें वोट दो!” – खुलेआम चल रहा ‘वोट बाजार’ – इलाके में हजारों की संख्या में साड़ियां बांटी जा रही हैं। स्थानीय व्यापारियों से गुपचुप तरीके से सामान खरीदा जा रहा है, और ये ‘महिलाओं के सम्मान’ के नाम पर वोट खरीदने की सबसे बड़ी साजिश बताई जा रही है। पुरुषों के लिए शराब और मुर्गे का इंतजाम किया गया है, ताकि नशे में धुत्त होकर वे ‘सही फैसला’ कर सकें!
अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन इस ‘लोकतंत्र के सौदेबाजों’ पर कोई कार्रवाई करेगा, या फिर चुनाव आयोग भी इस खेल का ‘मूकदर्शक’ बनकर रह जाएगा?
20 फरवरी को होगा फैसला –
इतिहास बदलेगा या वही पुरानी कहानी दोहराई जाएगी? अब सबकी नजरें 20 फरवरी पर हैं। क्या मतदाता इस बार सत्ता का ‘पुराना खेल’ बदल देंगे? या फिर जातीय समीकरण और पारिवारिक विरासतों के आगे ‘जनता की ताकत’ फीकी पड़ जाएगी?कुछ दिनों बाद जब मतगणना होगी, तब यह साफ हो जाएगा कि क्षेत्र क्रमांक 15 का राजा कौन बनेगा!