ब्रेकिंग न्यूज़ : नीलगिरी का बहाना इमारती लकड़ियों का खजाना लूट रहे तस्कर,, प्रशासन की आंखें बंद…
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सूत्रों के अनुसार सूरजपुर जिले के नीलगिरी के घने जंगलों में सागौन, साल और शीशम जैसी बहुमूल्य इमारती लकड़ियों की अवैध कटाई और तस्करी तेजी से बढ़ रही है। इन गतिविधियों के लिए तस्करों के गिरोह सक्रिय हैं, जो प्रशासन और वन विभाग की कथित मिलीभगत के आरोपों के बीच काम कर रहे हैं। यह न केवल पर्यावरणीय संतुलन को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों के बीच डर और असुरक्षा का माहौल पैदा कर रहा है। पर्यावरणविदों और ग्रामीणों ने प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल उठाए हैं, जो इस समस्या को और बढ़ा रहे हैं। स्थिति पर सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है।
नीलगिरी की आड़ में लकड़ी तस्करी का खेल
तस्करी का नेटवर्क – रामनगर, परीऺ , पीड़ा, देवनगर, श्रीनगर और बसदेई जैसे ग्रामीण इलाकों से इन लकड़ियों को पड़ोसी राज्यों तक तस्करी किया जा रहा है। इन इमारती लकड़ियों की बाजार में भारी मांग है, जहां इनकी कीमत लाखों रुपये तक पहुंच जाती है। तस्करों के गिरोह इस अवैध कार्य में सक्रिय हैं और विभिन्न तरीकों से प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों को चकमा दे रहे हैं..?
तस्करों की बढ़ती गतिविधियों से वन क्षेत्र धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है। जंगलों की कटाई के कारण स्थानीय वन्यजीवों का जीवन भी संकट में है।
वन और राजस्व विभाग पर उठे सवाल..?
स्थानीय लोगों का आरोप है कि वन विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों को इन अवैध गतिविधियों की जानकारी होने के बावजूद वे कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। इस चुप्पी के पीछे प्रशासनिक मिलीभगत की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता..?
पर्यावरण पर प्रभाव
अवैध कटाई और तस्करी का असर पर्यावरण पर साफ दिख रहा है। जंगलों की कटाई से क्षेत्र में जलवायु असंतुलन और मिट्टी का क्षरण बढ़ रहा है। वन्यजीवों के आवास खत्म हो रहे हैं, जिससे उनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
क्या करेंगे प्रशासनिक अधिकारी?
अब बड़ा सवाल यह है कि प्रशासनिक अधिकारी इन गतिविधियों पर कब और कैसे रोक लगाएंगे। क्या वन विभाग और राजस्व विभाग तस्करों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे या केवल आंख मूंदकर तमाशा देखते रहेंगे?
सूरजपुर जिले में हो रही अवैध लकड़ी कटाई और तस्करी न केवल पर्यावरण के लिए घातक है बल्कि यह प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल खड़ा करती है। अब देखना होगा कि प्रशासन इस समस्या को कितनी गंभीरता से लेता है और इसके खिलाफ क्या ठोस कदम उठाता है।